कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
101. लगाना चाहती हूँ छाती से
लगाना चाहती हूँ छाती से
पर लगा भी नही सकती
उनकी दयनीय बुरी दशा पर
हालत मेरी जैसे बुरी हुई।
चाहकर भी बोल नही पाती
ये चारों मेरे पुत्र हैं पापी
राज को अन्दर दबाती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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