कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
102. फिर उनके पास जाकर
फिर उनके पास जाकर
उनको मैं छुटवाती हूँ
हाँ ये भी मेरे पुत्र हैं
उन सबको ये समझाती हूँ।
तब जाकर कहीं वे छोड़े
उन्हें छोड़ सब घर को दौड़े।
अकेली रोती रह जाती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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