कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
104. जिस दिन से माँ तू गई
जिस दिन से माँ तू गई
उसी दिन से है लक्ष्मी रूठी
हम निहत्थे खड़े रह गये
हमें छोड़ तुम्हारी बहुएँ भी गईं
हम सभी निर्धन हुए माँ
सब कुछ जैसे हमारा लुट गया
यह सुन मैं तड़प जाती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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