कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
47. कभी इस समाज का डर
कभी इस समाज का डर
बनती कभी मैं आत्मनिर्भर
कभी लड़ने को मैं तैयार
ले अहिंसा की तलवार
लक्ष्मीबाई थी मैं रण में
बड़बड़ा रही थी स्वप्न में
जैसे मैं पागल हो चुकी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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