कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
75. इक दिन चारों ने विचार किया
इक दिन चारों ने विचार किया
अब इस बुढि़या का क्या होगा
सारा दिन खाती रहती है
इसका खर्चा ज्यादा होगा
मैंने चारों को पाल दिया
पर इनपर मेरा बोझ बढ़ा
चारों में अब बँटने वाली हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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