कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
107. सब भाइयों को एक किया
सब भाइयों को एक किया
सबकी बहुओं को मैं लाई
सभी को नया जन्म दिया
फिर से घर खुशहाली आई
चहूँ ओर थी सुख शांति
चहूँ ओर थी हर खुशी
अब मैं पैर पसार जाती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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