कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
108. आज इस समाज में औरत का
आज इस समाज में औरत का
दर्जा कितना छोटा हो गया
सब समझते हैं औरत को
मोजा अपने पाँव का।
जब मैला ये हो जाता है
सोचते हैं बदलने की।
विडम्बना ये समझाती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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