कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
112. मैं शेरनी तुम खुले भेड़िये
मैं शेरनी तुम खुले भेड़िये
क्या मेरा तुम बिगाड़ोगे
मुझे नोच-खसोट कर तुम
क्या ऐसे ही तड़फाओगे।
यदि मैं क्रोधित हुई तो
तुमको को मैं ना जीने दूँगी
मैं शाँतिप्रिय काली हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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