कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
17. जब भी मेरी छुट्टी के दिन
जब भी मेरी छुट्टी के दिन
पिता मेरे बाजार को जाते
मुझे अपने कंधे बिठाकर
पिताजी बाजार ले जाते
मुझे मेरी पसंद की चीजें
हमेशा पहले पहले दिलाते
ना दिलाये तो मैं रूठ जाती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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