कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
23. अब पिता और माँ को मेरी
अब पिता और माँ को मेरी
शादी की चिंता सताने लगी
उन्हें तो बस अब मैं
पराई नजर आने लगी।
माँ मुझको कंधे से बड़ी
पिताजी को बताने लगी
क्यों मैं पराई नजर आती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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