कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
|
6 पाठकों को प्रिय 268 पाठक हैं |
मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
28. इसी समाज के इक कोने में
इसी समाज के इक कोने में
मिला दूजवर, पिता को वर
मेरे लिये चुन लिया गया वह
थी उसकी वह अधेड़ उम्र
शादी के बँधन में बाँधने
पिता मेरे तैयार हुए
बूढ़ा पति, सोच घबराती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
¤ ¤
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book