कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
32. अब पहरों दर्पण आगे
अब पहरों दर्पण आगे
सजती और सँवरती हूँ
देखकर अपना ही मुखड़ा
खुद से ही बतियाती हूँ
तन की अपने हिफाजत करती
ओर सँभल कर हूँ चलती
हर ऋतु में बसती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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