कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
|
6 पाठकों को प्रिय 268 पाठक हैं |
मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
33. जवानी ने अब दस्तक दे दी
जवानी ने अब दस्तक दे दी,
मेरे गदराये तन पर भी
अब तक यूँ ही रहती थी मैं
मगर सँवरने अब मैं लगी
झड़ी लगी हैं फूलों की
हर क्यारी महकने लगी।
आसमान में उड़ने लगी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
¤ ¤
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book