कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
34. अब दुखों से अनभिज्ञ मैं
अब दुखों से अनभिज्ञ मैं
खूब खेलती, खूब मचलती
पर गाँवों की गलियों में मैं
हमेशा सिर झुकाकर चलती
शर्मोहया का पर्दा चेहरे पर
रखती हमेशा डाल कर
अभी तो मैं कुँवारी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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