कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
42. कुछ देर में ही हम तीनों
कुछ देर में ही हम तीनों
शांत-शलीके से बैठ गये
चुपचाप हम तीनों बैठे
बोलने का इंतजार करने लगे
तीनों आँखे आपस में
रूकी प्रश्नवाचक मुद्रा में
मैं मिट्टी, पैर से कुरेदती हूँ,
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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