कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
44. अन्त में आधी रात तक
अन्त में आधी रात तक
कोई निर्णय न हो पाया
मैंने वहाँ से निकल कर
कमरे में पहुँच दीप जलाया
बैठ खाट पर सोचने लगी
सजा मिली है कौन जन्म की
मैं इनकी लाचारी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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