कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
46. पता नहीं जाने कब मेरी
पता नहीं जाने कब मेरी
पलकें, पलकों में उलझ गई
न जाने ओर कब मैं
बिस्तर पर गिरी ओर सो गई
सुबह की भोर हो चुकी थी
नींद अभी भी मुझपे चढ़ी थी,
नींद के आगोश में खो चुकी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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