कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
48. तभी माँ ने मुझे धंधेड़ा
तभी माँ ने मुझे धंधेड़ा
पैर के अँगूठे को मरोड़ा
काम पर जाना है मुझे
उठ बेटी अब वक्त है थोड़ा
अनायास ही जगाया था
मुझे पूरी तरह हिलाया था।
आँखें मलती मैं उठती हूँ,
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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