कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
52. मैं बोलती जा रही थी
मैं बोलती जा रही थी
वो मुझे बस देख रहा था
मैंने उसे बोलने का शायद
मौका ही ना दिया था
उसकी बातें सुनने का
मेरे पास समय था कहाँ
आज मैं जल्दबाजी में हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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