कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
55. अब मैं चुप, वह बोल रहा था
अब मैं चुप, वह बोल रहा था
कानों में अमृतरस घोल रहा था
उसकी वह मृदु वाणी सुन
सारा तन-मन डोल रहा था।
शपथ कर चुका था मुझे पाने की
और जग से लड़ जाने की
सुन आँखों से नीर बहाती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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