कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
|
6 पाठकों को प्रिय 268 पाठक हैं |
मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
56. अब कह दो अपने पिता से
अब कह दो अपने पिता से
शादी तेरी होगी मुझसे
सोच-समझ यह विचार किया है
बिना दहेज ले चलूँगा तुझे
माँ-बाप की चिन्ता ना कर
झगड़ा उनसे लिया है कर
सिसकियों को मैं रोक जाती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
¤ ¤
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book