कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
61. मैं जो बोल पाती कुछ तो
मैं जो बोल पाती कुछ तो
उससे पहले घर वो आये
मैंने आँसू अपने पोंछे
खड़ी हुई सिर को झुकाये
यह नहीं बोलेगी कुछ
आज तो बोलूँगा मैं सबकुछ
यह सुन चुप हो जाती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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