कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
65. सुहागरात की सेज पर
सुहागरात की सेज पर
गुलाब की बँद कली सी मैं
बैठी थी अरमान सँजोये
महकूँगी बनकर कली मैं
पिया जो आये हाथ लगाये
घूँघट मेरा सिर से उठाये
छुईमुई सी इकट्ठी हो जाती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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