कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
66. सोचा मैंने, इक दिन मैं
सोचा मैंने, इक दिन मैं
सबको जीत ही लूँगी प्रेम से
पर शायद मेरा यह सपना
सपना ही बनकर रह जायेगा
क्योंकि सास-ननद मेरी
नाक चढ़ा कर हैं चलती
फिर भी आज्ञाकारी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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