कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
76. बड़े का फैसला मान्य था
बड़े का फैसला मान्य था
दो-दो महीने मुझे रखना था
आठ महीने में ही केवल
उनके हिसाब से मरना था
आठों महीने बीत गये
अब रहने के दिन भी गये
अजीब सी हालत वाली हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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