कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
77. आठ महीने तो मेरी
आठ महीने तो मेरी
जैसे-तैसे जिन्दगी बीती
पर चारों बेटों की मेरे प्रति
आज भी वही थी रीति
मुझे निकालने को थे आतुर
पर समाज के डर से व्याकुल
कैसी मैं इन पर भारी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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