कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
|
6 पाठकों को प्रिय 268 पाठक हैं |
मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
96. तभी अचानक खिलाने वाला
तभी अचानक खिलाने वाला
एक नौजवान पड़ोस वाला
बुरा भला उन्हें कहने लगा
मुझसे चुप ना रहा गया
गोद में ले पोते को अपने
पास पहुँच लगी मैं कहने
और कोप से बचाती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
¤ ¤
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book