व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> नया भारत गढ़ो नया भारत गढ़ोस्वामी विवेकानन्द
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संसार हमारे देश का अत्यंत ऋणी है।
जब तक करोड़ों भूखे और
अशिक्षित रहेंगे, तब तक मैं प्रत्येक उस आदमी को
विश्वासघातक समझूँगा, जो उनके खर्च पर शिक्षित हुआ है, परन्तु जो उनपर
तनिक भी ध्यान नहीं देता! वे लोग जिन्होंने गरीबों को कुचलकर धन पैदा किया
है और अब ठाठ-बाट से अकड़कर चलते हैं, यदि उन बीस करोड़ देशवासियों के लिए
जो इस समय भूखे और असभ्य बने हुए हैं, कुछ नहीं करते, तो वे घृणा के पात्र
हैं।
''आत्मवत् सर्वभूतेषु'
(सभी प्राणियों को स्वयं की तरह देखना) क्या यह
वाक्य केवल मात्र पोथी में निबद्ध रहने के लिए है? लोग गरीबों को रोटी का
टुकड़ा नहीं दे सकते, वे फिर मुक्ति क्या दे सकते हैं? दूसरों के
श्वास-प्रश्वासों से जो अपवित्र बन जाते हैं, वे फिर दूसरों को क्या
पवित्र बना सकते हैं? अस्पृश्यता एक प्रकार की मानसिक व्याधि है; उससे
सावधान रहना।
उठो और अपना पौरुष प्रकट
करो। अपना ब्राह्मणत्व दीप्त करो, प्रभु- भाव से
नहीं, अंधविश्वासों और पूर्व-पश्चिम के प्रपंचों के सहारे पनपनेवाले विकृत
घातक अहंभाव से नहीं - बल्कि सेवक की भावना के साथ दूसरों को ऊपर उठाकर।
धन, विद्या या ज्ञान को
प्राप्त करने में समाज के अंतर्गत प्रत्येक
व्यक्ति को समान सुविधा रहनी चाहिए। सभी विषयों में स्वाधीनता, यानी
मुक्ति की ओर अग्रसर होना ही पुरुषार्थ है। ... जो सामाजिक नियम इस
स्वाधीनता के स्फुरण में बाधा डालते हैं वे ही अहितकर्म हैं और ऐसा करना
चाहिए जिससे वे जल्द नाश हो जायँ। जिन नियमों के द्वारा सब जीव स्वाधीनता
की ओर बढ़ सकें उन्हीं की पुष्टि करनी चाहिए।
प्रत्येक वस्तु का
अग्रांश दीनों को देना चाहिए, अवशिष्ट भाग पर ही हमारा
अधिकार है। सब से पहले उस विराट् की पूजा करो, जिसे तुम अपने चारों ओर देख
रहे हो 'उसकी' पूजा करो। 'वर्शिप' ही इस संस्कृत शब्द का ठीक समानार्थक
है, अंग्रेजी के किसी अन्य शब्द से काम नहीं चलेगा। ये मनुष्य और पशु,
जिन्हें हम आस-पास और आगे-पीछे देख रहे हैं, ये ही हमारे ईश्वर हैं। इनमें
सब से पहले पूज्य हैं हमारे अपने देशवासी। अपना सारा ध्यान इसी एक ईश्वर
पर लगाओ, हमारा देश ही हमारा जागृत देवता है। सर्वत्र उसके हाथ हैं,
सर्वत्र उसके पैर हैं और सर्वत्र उसके कान हैं। समझ लो कि दूसरे
देवी-देवता सो रहे हैं। जिन व्यर्थ के देवी-देवताओं को हम देख नहीं पाते,
उनके पीछे तो हम बेकार दौड़े और जिस विराट् देवता को हम अपने चारों ओर देख
रहे हैं, उसकी पूजा ही न करें?
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