व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> नया भारत गढ़ो नया भारत गढ़ोस्वामी विवेकानन्द
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संसार हमारे देश का अत्यंत ऋणी है।
जब तुम सुख की कामना समाज
के लिए त्याग सकोगे तब तुम भगवान बुद्ध बन
जाओगे, तब तुम मुक्त हो जाओगे।
आओ, हम सब प्रार्थना
करें, 'हे कृपामयी ज्योति, पथप्रदर्शन करो' और अंधकार
में से एक किरण दिखाई देगी, पथप्रदर्शक कोई हाथ आगे बढ़ आयेगा। ... जो
दारिद्र्य, पुरोहित-प्रपंच तथा प्रबलों के अत्याचारों से पीड़ित हैं, उन
भारत के करोड़ों पददलितों के लिए प्रत्येक आदमी दिन- रात प्रार्थना करें।
मैं धनवान और उच्च श्रेणी की अपेक्षा उन पीड़ितों को ही धर्म का उपदेश देना
पसंद करता हूँ। मैं न कोई तत्व-जिज्ञासु हूँ न दार्शनिक हूँ और न सिद्ध
पुरुष हूँ। मैं निर्धन हूँ और निर्धनों से प्रेम करता हूँ। बीस करोड़
नर-नारी जो सदा गरीबी और मूर्खता के दलदल में फँसे हैं, उनके लिए किसका
हृदय रोता है?.. उसी को मैं महात्मा कहता हूँ, जिसका हृदय गरीबों के लिए
द्रवीभूत होता है।.. कौन उनके दुःख में दुःखी है? ... ये ही तुम्हारे
ईश्वर हैं, ये ही तुम्हारे इष्ट बने। निरंतर इन्हीं के लिए सोचो, इन्हीं
के लिए काम करो, इन्हीं के लिए निरंतर प्रार्थना करो प्रभु तुम्हें मार्ग
दिखायेगा।
बड़े काम करने के लिए तीन
बातों की आवश्यकता होती है। पहला है हृदय की
अनुभव-शक्ति। ... क्या तुम अनुभव करते हो? क्या तुम हृदय से अनुभव करते हो
कि देव और ऋषियों की करोड़ों संतानें आज पशुतुल्य हो गयी हैं? क्या तुम
हृदय से अनुभव करते हो कि लाखों आदमी आज भूखों मर रहे हैं और लाखों लोग
शताब्दियों से इसी भांति भूखों मरते आये हैं? ... क्या तुम यह सब सोचकर
बेचैन हो जाते हो? क्या इस भावना ने तुम्हें निद्राहीन कर दिया है? क्या
यह भावना तुम्हारे रक्त के साथ मिलकर तुम्हारी धमनियों में बहती है? क्या
वह तुम्हारे हृदय के स्पंदन से मिल गयी है? क्या उसने तुम्हें पागल सा बना
दिया है? क्या देश की दुर्दशा और चिंता ही तुम्हारे ध्यान का एकमात्र विषय
बन बैठी है? और क्या इस चिंता में विभोर हो जाने से तुम अपने नाम-यश,
पुत्र-कलत्र, धन-संपत्ति, यहाँ तक कि अपने शरीर की भी सुध बिसर गये हो?
क्या तुमने ऐसा किया है?
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