लोगों की राय

व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> नया भारत गढ़ो

नया भारत गढ़ो

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :111
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9591
आईएसबीएन :9781613013052

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

91 पाठक हैं

संसार हमारे देश का अत्यंत ऋणी है।


यदि 'हाँ’, तो जानो कि तुमने देशभक्त होने की पहली सीढ़ी पर पैर रखा है। हाँ, केवल पहली ही सीढ़ी पर। क्या इस दुर्दशा का निवारण करने के लिए तुमने कोई यथार्थ कर्तव्य-पथ निर्मित किया है? क्या लोगों की भर्त्सना न कर उनकी सहायता का कोई उपाय सोचा है? क्या स्वदेशवासियों को उनकी इस जीवन्मृत अवस्था से बाहर निकालने के लिए कोई मार्ग ठीक किया है? क्या उनके दुःखों को कम करने के लिए दो सांत्वनादायक शब्दों को खोजा है? ... किंतु इतने ही से पूरा न होगा। क्या तुम पर्वताकार विघ्न-बाधाओं को लाँघकर कार्य करने के लिए तैयार हो? यदि सारी दुनिया हाथ में नंगी तलवार लेकर तुम्हारे विरोध में खड़ी हो जाय, तो भी क्या तुम जिसे सत्य समझते हो, उसे पूरा करने का साहस करोगे?.. फिर भी क्या तुम उसके पीछे लगे रहकर अपने लक्ष्य की ओर सतत बढते रहोगे? ... क्या तुममें ऐसी दृढ़ता है? यदि तुममें ये तीन बातें हैं, तो तुममें से प्रत्येक अद्भुत कार्य कर सकता है। जिससे उद्देश्य एवं लक्ष्य कार्य में परिणत हो जाय, उसी के लिए प्रयत्न करो। मेरे साहसी, महान् सदाशय बच्चो! काम में जी-जान से लग जाओ! नाम, यश अथवा अन्य तुच्छ विषयों के लिए पीछे मत देखो। स्वार्थ को बिल्कुल त्याग दो और कार्य करो।

आगे बढ़ो। हमें अनंत शक्ति, अनंत उत्साह, अनंत साहस तथा अनंत धैर्य चाहिए, तभी महान् कार्य संपन्न होगा।

मेरे बच्चे, मैं जो चाहता हूँ वह है लोहे की नसें और फौलाद के स्नायु जिनके भीतर ऐसा मन वास करता हो, जो कि वज्र के समान पदार्थ का बना हो। बल, पुरुषार्थ, क्षात्रवीर्य और ब्रह्मतेज!

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book