उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
|
8 पाठकों को प्रिय 352 पाठक हैं |
भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर यह उपन्यास लिखा गया है।
वैसे तो श्री राम के जीवन पर सैकड़ों ही नहीं, सहस्रों रचनाएं लिखी जा चुकी हैं, इस पर भी जैसा कि कहते हैं–
भगवान राम परमेश्वर का साक्षात अवतार थे अथवा नहीं, इस विषय पर कुछ न कहते हुए यह तो कहा ही जा सकता है कि उन्होंने अपने जीवन में जो कार्य सम्पन्न किया वह उनको एक अतिश्रेष्ठ मानव पद पर बैठा देता है। लाखों, करोड़ों लोगों के आदर्श पुरुष तो वह हैं ही। और भारत वर्ष में ही नहीं बीसियों अन्य देशों में उनको इस रूप में पूजा जाता है। राम कथा किसी न किसी रूप में कई देशों में प्रचलित है।
और तो और तथाकथित प्रगतिशील लेखक जो वैचारिक दृष्टि से कम्युनिस्ट ही कहे जा सकते हैं, वे आर्यों को दुष्ट, शराबी, अनाचारी, दशरथ को लम्पट, दुराचारी लिखते हैं परन्तु राम की श्रेष्ठता को नकार नहीं सके। राम में क्या विशेषता थी, पौराणिक कथा ‘अमृत मंथन’ का क्या महत्त्व था, राम ने अपने जीवन में क्या कुछ किया, प्रस्तुत उपन्यास में इसी पर प्रकाश डाला गया है।
यह एक तथ्य है कि चाहे सतयुग हो, त्रेता-द्वापर हो अथवा कलियुग हो, मनुष्य की दुर्बलता उसमें उपस्थित पाँच विकार–काम, क्रोध, लोभ, मोह तथा अहंकार होती है और इन विकारों के चारों ओर ही मनुष्य का जीवन घूमता है। इन विकारों पर नियंत्रण यदि उसका आत्मा प्रबल हो तो उसके द्वारा होनी चाहिए अन्यथा राजदण्ड का निर्माण इसी के लिए हुआ है। परन्तु जब ये विकार किसी शक्तिशाली, प्रभावी राजपुरुष में प्रबल हो जाते हैं तो देश में तथा संसार में अशान्ति का विस्तार होने लगता है और तब श्रेष्ठ सत् पुरुषों को उनके विनाश का आयोजन करना पड़ता है और यही इतिहास बन जाता है। इन्हीं विकारों ने देवासुर संग्राम का बीज बोया, रावण तथा राक्षसों को अनाचार फैलाने की प्रेरणा दी, महाभारत रचा तथा आज के युग में भी देश के भीतर गृहयुद्ध तथा देश में परस्पर युद्ध करा रहे हैं।
इन विकारों के प्रभाव में दुष्ट पुरुष सदा विद्यमान रहे हैं और आज भी प्रभावी हो रहे हैं। श्रेष्ठ जनों को संगठित होकर उनके विरुद्ध युद्ध के लिए तत्पर होना होगा। जो लोग, देश तथा जाति इस प्रकार के धार्मिक युद्धों से घबराती हैं वह पतन को ही प्राप्त होती है। दुष्टों के प्रभावी हो जाने से पूर्व ही जब तक उनके विनाश का आयोजन नहीं किया जाता, तब तक युद्धों को रोका नहीं जा सकता और ऐसे युद्धों के लिए सदा तत्पर रहना ही देश में शान्ति स्थिर रख सकता है।
प्रथम परिच्छेद
1
दिल्ली करोलबाग लड़कियों के सरकारी स्कूल की प्रधानाचार्या श्रीमती महिमा एम. ए., बी-एड. अपने स्कूल में सर्वप्रिय थी। अध्यापिकाओं, छात्राओं और स्कूल के कर्मचारियों आदि सब में वह आदर और प्रशंसा की पात्रा बनी हुई थी।
महिमा की महिमा यही थी कि वह मृदुभाषी, न्यायप्रिय थी और पढ़ाने में अति परिश्रम और कुशलता से यत्नशील रहती थी।
जब से इस स्कूल में वह आयी थी, स्कूल का परीक्षा-फल अति श्रेष्ठ रहने लगा था और राज्य के प्रशासन में स्कूल की महिमा दिन-प्रतिदिन बढ़ रही थी।
|