लोगों की राय

उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592
आईएसबीएन :9781613011072

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

352 पाठक हैं

भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास

9

खाने के उपरान्त फ्रिट्स और उसकी पत्नी खाने के लिये कुलवन्त का धन्यवाद कर अगले दिन-रात का खाना उनके यहाँ लेने का वचन ले चल दिये।

कुलवन्त अपने कमरे में चला गया। अमृतलाल सूसन को अपने कमरे में छोड़ स्वयं कुलवन्त से बात करने उसी के कमरे में आ गया।

कुलवन्त होटल के बैरे को दो प्याले कॉफी लाने के लिये कह अमृत से बातचीत करने बैठ गया। जब वैरा कॉफी दे गया तो अमृत ने कमरे का द्वार भीतर से बन्द कर अपनी कथा बता दी। उसने कहा, ‘‘पिछले वर्ष अक्टूबर पन्द्रह को हमारा स्क्वैड्रन लायलपुर के राडार को तबाह करने लगा था। राडार को मैंने ही बम्बों से उड़ाया था। मैंने तीन बार गोता लगा बम्ब फैंके थे। तीन डुबकियों में मैंने पन्द्रह बम्ब उस क्षेत्र पर गिराये थे। अन्तिम डुबकी में दो बम्ब निशाने पर बैठे। परन्तु इस बार मेरे जहाज के ‘फ्यूअल टैंक’ में गोली लगने से टैंक बहने लगा था। मैंने और मेरे साथियों ने वहाँ से भाग अमृतसर पहुँचने का यत्न किया। यदि टैंक में आग न लगती तो हम अमृतसर पहुँच जाते, परन्तु लायलपुर से बीस मील के अन्तर पर ही टैंक फट गया। हवाई जहाज को आग लग गयी। मैं पैराशूट बाँधे हुए था और मैंने हवाई जहाज से छलाँग लगा दी।

‘‘मैं एक गाँव से एक मकान की छत्त पर उतरा। मेरे गिरने और पैराशूट के गिरने का शब्द सुन घर की स्त्रियाँ छत पर आ गयी। उनके हाथों में लाठियाँ थीं। उनके आने तक मैं अभी पैराशूट के रस्सों से मुक्त हो रहा था।

‘‘एक लड़की ने मेरे सिर पर लाठी चलाने के लिये उठायी तो मेरे मुख से अनायास ही निकल गया, ‘ठहरो, मैं मुसलमान हूँ।’

‘‘इस पर उस लड़की की लाठी नीचे हो गयी। मैं जब कश्मीर में था तो वहाँ अपने रफीक की हत्या करने के लिये मुझे मुसलमान का अभिनय करना पड़ा था। इस कारण सुत्रत करवायी थी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book