उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
‘‘मेरे कहने पर लड़की ने कह दिया, ‘झूठ।’
‘नहीं बहन! मैं मुसलमान हूँ। मेरा हवाई जहाज अभी हवा में जल गया है और खुदा की मेहर से मैं बच गया हूँ।’’
‘‘इस पर एक बड़ी आयु की स्त्री ने पूछ लिया, ‘नाम क्या है?’
‘‘मैने बताया, ‘असगर अली। खुदा की कसम, में मुसलमान हूँ।’ ‘‘वह स्त्री चुप थी। दो प्रौढ़ावस्था की थी और एक कुँवारी प्रतीत होती थी। वे परस्पर सम्मति करने लगीं। मैंने तब तक अपने को पैराशूट से छुड़ा लिया। मैंने उनको अनिश्चित मन देखा तो कह दिया, ‘थोड़ा पानी पिला दो।’’
‘नहीं कुँवारी लड़की नीचे को भागी। उसकी दृष्टि में मुसलमान होने से मैं एक बहादुर पाकिस्तानी अफसर बन गया था। मैंने कहा ‘जान बच जाने से मैं नमाज पर खुदा का शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ।’
‘‘वे स्त्रियाँ मुझे छत्त से नीचे ले गयीं और मुझे एक खाट पर बिठाया गया। वही लड़की मेरे लिये गिलास में पानी ले आयी। मैंने जल पिया और गिलास वापस करते हुए कहा, ‘मुझे अलैहदा नमाज पढने दो।’’
‘‘मैं देख रहा था कि मेरा वहाँ रहना भययुक्त है। थोड़े ही काल में गाँव में मेरे छतरी से उतरने की बात फैल जायेगी और दूसरे लोग तो वरगलाये नहीं जा सकेंगे। उनके सामने कुछ-न-कुछ कहानी बनानी पड़ेगी। इसी कहानी को सोचने के लिये ही मैं एकान्त चाहता था। उसी लड़की ने एक कमरे में चटाई बिछा दी और मैं घुटने टेक उस पर बैठा तो स्त्रियाँ बाहर चली गयीं।
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