उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
‘‘चौधरी को मेरी कहानी पर विश्वास आ गया और वह बोला, ‘ठहरो! मुझे जरा सोचने दो।’ कुछ देर तक वह मौन बैठा रहा। फिर बोला, ‘बात बन गयी है। तुम लेट जाओ। मैं रमजान की बीबी से राय करता हूँ।’
‘‘वह बाहर चला गया। पाँच मिनट के बाद चौधरी और घर की लड़की लौट आये। लड़की ने कहा, ‘चौधरी ने कहा है कि तुम फौजी कैदी नहीं बनना चाहते। हम इसका इन्तजाम कर रहे हैं। पहले चौधरी और अम्मी बाहर वालों से बात कर आयें तब पीछे तुमको बतायेंगे कि क्या हो सकता है?
‘अभी तुम लेट जाओ! चौधरी साहब गाँव के लोगों को कहने गये हैं कि तुम्हें दिल का दौरा पड़ा हुआ है और तुम्हें दवाई दी जा रही है।’
‘‘उस लड़की ने मेरे लिये खाट वहाँ ही लगा मुझे लिटा दिया और मेरे ऊपर रज़ाई डाल दी। वह स्वयं एक चौकी पर खाट के पास ही बैठ गयी। पाँच-सात मिनट के बाद चौधरी दो गाँव के रहने वाले व्यक्तियों को साथ लेकर आया और मुझे लेटे हुए दिखा गया। चौधरी ने मेरी नब्ज देखी और कह दिया, ‘तुम ठीक हो रहे हो। जवान, तुम लेटे रहो।’
‘‘चौधरी और दोनों दूसरे दबे-पाँव आये थे और दबे-पाँव ही बाहर चले गये। चौधरी ने लोगों को क्या कहा, मुझे पता नहीं।
‘‘रात को वही लड़की मेरे लिये तन्दूरी रोटियाँ और पतला-पतला माँस का शोरबा लायी। मैं शोरबे में रोटी भिगो-भिगो का रहा था तो उस लड़की ने बताया, ‘मैं समझती हूँ कि तुम्हारी जान बच जायेगी। मगर एक शर्त है।’
‘क्या?’ मैंने पूछा।
‘तुमको रात ही यह मकान छोड़ना पड़ेगा।’
‘तो कहाँ जाऊँगा?’
‘जहाँ मैं ले जाऊँगी।’
‘कहाँ ले जाओगी?’
‘अपने ननिहाल में। मगर...।’
‘मगर क्या?’
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