उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
‘‘मिस्टर स्मिथ ने मुझे पसन्द तो किया है, परन्तु वह चाहता था कि मैं विवाह कर लूँ। मैं विवाह कर नहीं सकता। कारण यह कि यह सौगन्धपूर्वक कहना पड़ेगा कि मेरी पहले कोई विवाहित पत्नी नहीं है।
‘‘यह बात मैंने सूसन के पिता से तो बतायी नहीं, परन्तु मैंने कह दिया है कि जैसा सूसन कहेगी, मैं तैयार हूँ। सूसन जानती है कि मैं विवाह नहीं कर सकता। इस कारण सूसन ने एक बात कह दी है। वह यह कि यदि कोई बच्चा होने का अवसर आया तो विवाह कर लेगी।
‘‘यहाँ के समाज की बात विचित्र है। उसके पिता ने हमें आशीर्वाद दे दिया है और परमात्मा से प्रार्थना कर दी है कि हमारे घर में एक-दो बच्चे हो जायें।’’
इस पर तीनों हँसने लगे।
अब सूसन ने कहा, ‘‘मिस्टर सिंह! मैं आपसे निवेदन करती हूँ कि आप इनके जीवित रहने की सूचना भारत में न भेजें। यह यहाँ फ्रांसीसी एयर लाइन्स में नौकरी पा जायेंगे और फिर फ्रांसीसी नागरिक के रूप में रहने लगेंगे।’’
‘‘मैंने भी इस विषय पर विचार किया है और इस परिणाम पर पहुँचा हूँ कि यह अपना नाम बदलकर यहाँ आपके साथ रहें। मैं इसका रहस्य सेना में नहीं दूँगा। परन्तु इस बात की सूचना इसकी पत्नी को अवश्य दूँगा कि यह जीवित है। उसका इसके साथ क्या व्यवहार होता है, यह मैं उस पर छोड़ता हूँ। अमृत की माता को भी सूचना मिलनी चाहिये। उसको इसके जीवित होने के समाचार से सुख मिलेगा।
‘मैं उनको समझाने का यत्न करूँगा कि वे दोनों इससे सम्पर्क उत्पन्न करें और कोई व्यावहारिक प्रबन्ध बना लें। यह भारत में नहीं जा सकेगा। वहाँ यह सेना से भागा हुआ समझा जायेगा और इसका ‘कोर्ट मार्शल’ भी हो सकता है।
‘मैं इसका रहस्य अपने कार्यालय में नहीं बताऊँगा। इसे भी किसी को नहीं बताना चाहिये कि यह मुझे मिला है।’’
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