उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
‘‘वह तैयार हो गयी। मैं समझ गया कि मेरा अनुमान ठीक है कि पुरुष-स्त्री आकर्षण सफल हो जायेगा।
‘‘मैं उसे छावनी में अपने क्वार्टर पर ले गया। वहाँ चाय का प्रबन्ध कैन्टीन से करवा लिया। चाय पीते हुए मैंने सुलह करने की इच्छा प्रकट की। उसने एक शर्त रख दी। मैं मान गया और हमारी वास्तविक सुलह वहाँ ही हो गयी।
‘‘रात मैं महिमा के घर पर सोया। माँ ने आशीर्वाद दिया और मैं समझता हूँ कि माँ को आशीर्वाद देने का फल मिल रहा है।’’
‘‘क्या शर्त थी महिमा की?’’
‘‘यही कि वह माताजी का परिवार चलाने के लिये एक सन्तान चाहती है। इसके अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं।’’
‘‘अच्छा अमृत! तुम अपने इस अंग्रेज श्वसुर से मिलकर मुझे कल यहाँ इसी होटल में मध्याह्नोत्तर चाय के समय मिलना। शेष बात उसके प्रकाश में करेंगे जो तुम्हारी इस श्वसुर से भेट में होगा।’’
रात के ग्यारह बज गये थे। अमृत अपने कमरे में चला गया। अगले दिन प्रातः के अल्पाहार के समय अमृत से भेंट नहीं हुई। सूसन और दोनों प्रातः का अल्पाहार लेने मिस्टर बाउन स्मिथ के मकान पर जा पहुँचे थे।
अल्पाहार के उपरान्त कुलवन्त ब्रिटिश म्युजियम में चला गया और वहाँ के पुस्तकायल में जा बैठा। मध्याह्नोत्तर चार बजे तक वह वहाँ रहा। तदनन्तर वह होटल मैट्रोपोलिटन में चला गया। वहाँ सूसन और अमृत दोनों उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे।
तीनों चाय के लिये ‘रिसैप्शन रूम’ में चले गये। अमृत ने वहाँ बैठते ही सूसन के पिता से हुआ वार्त्तालाप सुना दिया। उसने कहा, ‘‘कुलवन्त! मैंने सूसन को तुम्हारा पूर्ण परिचय दे दिया है और हमने मिस्टर ब्राउन स्मिथ को भी अपने ‘मैन एण्ड वाइफ’ बने रहने का समाचार दे दिया है।
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