उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
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रात सुन्दरी महिमा के घर में ही रही। कुलवन्त जब दिन-भर के कामों से अवकाश पा गया तो वह बाबा की कथा वाली पुस्तक निकाल पढ़ने लगा।
उसने पुस्तक का पहला खण्ड पढ़ा था। महिमा ने उस खण्ड का नाम ‘अमृत-मन्थन’ रखा था। अब वह दूसरा खण्ड निकाल कर पढ़ने लगा। इसमें लिखा था–
राक्षस भागे तो पाताल देश में जा पहुँचे। पाताल देश जन-शून्य था। वहाँ जंगल-ही-जंगल था। पशु-पक्षी भी बहुत कम थे। वनस्पतियाँ सर्वथा नवीन प्रकार की थी और राक्षस नहीं जानते थे कि क्या खाया जाये और क्या न खाया जाये?
वहाँ जाकर उनको पुनः वही कुछ करना पड़ा जो उनके पूर्वजों को लंका में पहुँच करना पड़ा था।
भोजन सबसे पहली समस्या थी। निवास-गृह दूसरी और फिर परिवार तीसरी। माल्यवान् सुमाली और माली में से सुमाली ही जीवित बचा था। उसका परिवार भी सुदर्शन-चक्र की अग्नि में भस्म हो गया था। कुछ राक्षस और गन्धर्व अपनी पत्नियों को बचाकर ले जा सके थे। सुमाली ने अपने लिये कुटिया बनाई और एक गन्धर्व कन्या से विवाह कर नये परिवार की सृष्टि आरम्भ कर दी। कालान्तर में उसके एक लड़का और एक लड़की हुई तो वह उनके पालन-पोषण का प्रबन्ध करने लगा।
सुमाली अपने पिता का विमान बचाकर ला सका था और उसकी सहायता से वह इस नये देश का सर्वेक्षण कर अपने सजातियों को बसाने में सफल हुआ था। उसने यह पता कर लिया था कि कहाँ-कहाँ फलों वाले वृक्ष हैं। कहाँ भूमि कृषि योग्य है और कहाँ पीने योग्य जल मिल सकता है।
लंका से निकले दस वर्ष हो चुके थे और वह तथा उसके साथी वहाँ अकिंचनों का जीवन व्यतीत कर रहे थे।
इस समय कुछ राक्षस अपनी अवस्था से दुःखी लंका में गये और वहाँ एक नया राज्य स्थापित हुआ देख पुनः वहाँ रहने की योजना बनाने लगे। उन्होंने वहाँ के राजा के पास पहुँच अपनी खेती-बाड़ी के लिये भूमि माँगी। राजा था कुबेर। यह महर्षि विश्रवा का पुत्र था और शास्त्रों का गूढ़ ज्ञाता था। अर्थशास्त्र उसके अध्ययन का विशेष विषय था।
कुबेर की योग्यता देख ब्रह्मा ने असुरों के चले जाने पर खाली पड़ी लंका में उसे लोकपाल बनाकर भेज दिया था। लंका-जैसे उष्ण देश में देवताओं को जाकर बसने में किसी प्रकार का प्रलोभन नहीं था। भारत खण्ड के लोग भी अपने-अपने देश में अति प्रसन्न और सन्तुष्ट होने के कारण लंका में जाकर बसने के लिये तैयार नहीं थे। कुबेर के बहुत यत्न करने पर कुछ लोग आये, परन्तु वहाँ वह चहल-पहल नहीं बन सकी जो राक्षस-राज माल्यवान के काल में थी।
जब पाताल देश के लोग वहाँ आकर रहने की स्वीकृति माँगने लगे तो कुबेर ने पूछा, ‘‘कहाँ के रहने वाले हो?’’
‘‘पाताल देश के।’’
‘‘परन्तु तुम भाषा तो यहाँ की बोलते हो?’’
‘‘हाँ, महाराज! हमारे पूर्वज यहाँ इसी देश में रहते थे। हमारे पूर्वजों पर विष्णु ने आक्रमण कर दिया तो हमें मार-मार यहाँ से भगा दिया। हम पाताल देश में गये थे, परन्तु वहाँ जीवन बहुत-दुस्तर है; इस कारण हम पुनः यहाँ लौट आना चाहते हैं।’’
कुबेर ने कहा कि उनको यहाँ के धर्म का पालन करना होगा। राक्षस मान गये और कुबेर ने उन्हें वहाँ रहने की अनुमति दे दी। वे लोग वहाँ रहने लगे। उनको समतल खेत, बने पक्के मकान और अन्य सब सभ्य देश की सुविधायें प्राप्त हो गयीं। इन पाताल से आये राक्षसों में से कुछ लोग अपने सम्बन्धियों को भी वहाँ ले आने के लिये पाताल गये और वहाँ से लंका लौटने वालों का ताँता लग गया।
सुमाली को राक्षसों को पुनः लंका लौटते देख विचार आया कि वह भी क्यों न लौट जायें, परन्तु वह उस देश में जहाँ राज्य करता था वहाँ सामान्य प्रजा बन कर रहने का विचार नहीं कर सका।
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