उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
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विश्रवा ऋषि पत्नी से और कैकसी पति से सन्तुष्ट रात के भोजन पर बैठे तो ऋषि ने कहा, ‘‘देवी! सन्तान की इच्छा पत्नी में ही उत्पन्न होती है। यह पति का कर्तव्य है कि वह पत्नी की इच्छा पूर्ण करे।
‘‘मैंने यह कर्तव्य पालन कर दिया है और आशा करता हूँ कि तुम एक महा पराक्रमी और बुद्घिमान पुत्र की माँ बनोगी।’’
‘‘पर भगवन्! सन्तान की इच्छा पति में नहीं होती क्या?’’
‘‘मेरा अनुमान है कि यदि होती है तो वह इतनी न्यून होती है कि उसकी अवहेलना की जा सकती है। परन्तु पत्नी की इच्छा यदि प्रबल न हो तो सन्तान उत्पन्न ही न हो।’’
आगे ग्रन्थ में लिखा था–
जब विष्णुशरण इतनी कथा कह चुके तो भृगुदत्त ने पूछ लिया, ‘‘बाबा? यदि पति में कामना का वेग न हो तो वह सन्तान उत्पत्ति से इन्कार भी कर सकता है?’’
‘‘पर यह उचित नहीं।’’ बाबा का कहना था, ‘‘सन्तान पत्नी को जीवन-भर सुख देने वाली होती है और उसकी इच्छा पूरी न की जाये तो संसार में दुराचार फैलने की सम्भावना है।
‘‘यही परमात्मा का विधान है। यह होना ही चाहिये।’’
महिमा ने कह दिया, ‘‘पर बाबा! मेरा विवाह तो मेरी इच्छा पर नहीं हुआ। मेरे विषय में विवाह की इच्छा और योजना आपके पोते की थी।
‘‘मैं एक पुस्तक-विक्रेता की दुकान पर खड़ी पुस्तक बदलने का यत्न कर रही थी। पुस्तक-विक्रेता पुस्तक बदल नहीं रहा था। मैं नवीन प्रति क्रय करने के लिये तैयार नहीं थी। मेरे पास नयी पुस्तक के लिये दाम नहीं था।
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