धर्म एवं दर्शन >> पवहारी बाबा पवहारी बाबास्वामी विवेकानन्द
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यह कोई भी नहीं जानता था कि वे इतने लम्बे समय तक वहाँ क्या खाकर रहते हैं; इसीलिए लोग उन्हें 'पव-आहारी' (पवहारी) अर्थात् वायु-भक्षण करनेवाले बाबा कहने लगे।
इस प्रकार प्राचीन परम्परा के भारतीय विद्यार्थियों के दैनिक कर्तव्यों के बीच इस भावी सन्त का बाल्य जीवन व्यतीत होने लगा। उनके उस समय के सरल आनन्दमय तथा क्रीड़ाशील छात्रजीवन में अपने अध्ययन के प्रति असाधारण अनुराग तथा भाषाएँ सीखने की अपूर्व प्रवृत्ति के अतिरिक्त और कोई ऐसी विशेष बात नहीं दिखाई देती थी कि जिससे उनके भावी जीवन की उस उत्कट गम्भीरता का अनुमान किया जा सकता, जिसकी परिणति एक अत्यन्त अद्भुत तथा रोमांचकारी आत्माहुति में होनेवाली थी।
इसी समय एक ऐसी घटना हुई, जिससे इस अध्ययनरत युवक को सम्भवत: पहली ही बार जीवन के गम्भीर रहस्य की अनुभूति हुई। अब तक जो दृष्टि किताबों में ही गड़ रही, थी, उसे ऊपर उठाकर वह युवक अपने मनोजगत् का बारीकी के साथ निरीक्षण करने लगा। और धर्म का वह अंश जानने के लिए व्याकुल हो उठा, जो केवल किताबी ही न होकर वास्तव में सत्य है।
इसी समय उसके चाचा की मृत्यु हो गयी - इस तरुण हृदय का समस्त प्रेम जिस पर केन्द्रित था, वही चल बसा। दुःख से मर्माहत एवं सन्तप्त युवक शून्य को पूर्ण करने के लिए अब एक ऐसी चिरन्तन वस्तु के अन्वेषण के लिए कटिबद्ध हो गया, जिसमें कभी परिवर्तन होता ही नहीं। भारत में सभी विषयों के लिए हमें गुरु की आवश्यकता होती है। हम हिन्दुओं का ऐसा विश्वास है कि ग्रन्थ रूपरेखा मात्र हैं। प्रत्येक कला में, प्रत्येक विद्या में, विशेषकर धर्म में जीवन्त रहस्यों की प्राप्ति शिष्य को गुरु द्वारा ही होनी चाहिए।
अत्यन्त प्राचीन काल से ही भारत में जिज्ञासुओं ने बिना व्यतिक्रमों के अन्तर्जगत् के रहस्यों की खोज करने के लिए सदैव एकान्त का आश्रय लिया है और आज भी ऐसा एक भी वन, पर्वत अथवा पवित्र स्थान नहीं है, जिसके सम्बन्ध में यह किंवदन्ती न प्रचलित हो कि किसी न किसी महात्मा के निवास से वह स्थान पवित्र हुआ है।
यह कहावत प्रसिद्ध है :
रमता साधु, बहता पानी।
इनमें कभी न मैल लखानी।।
'जिस प्रकार बहता पानी शुद्ध और निर्मल होता है, उसी प्रकार भ्रमण करनेवाला साधु भी पवित्र तथा निर्मल होता है।'
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