धर्म एवं दर्शन >> सरल राजयोग सरल राजयोगस्वामी विवेकानन्द
|
4 पाठकों को प्रिय 372 पाठक हैं |
स्वामी विवेकानन्दजी के योग-साधन पर कुछ छोटे छोटे भाषण
प्राणायाम के तीन अंग हैं :
(2) कुम्भक - श्वास रोकना।
(3) रेचक - श्वास छोड़ना।
मस्तिष्क में से होकर मेरुदण्ड के दोनों ओर बहनेवाले दो शक्ति-प्रवाह हैं, जो
मूलाधार में एक दूसरे का अतिक्रमण करके फिर मस्तिष्क में लौट आते हैं। इन
दोनों में एक का नाम 'सूर्य' (पिंगला) है, जो मस्तिष्क के वाम गोलार्ध से
प्रारम्भ होकर मस्तिष्क के ठीक नीचे दूसरे प्रवाह को लाँघते हुए मेरुदण्ड के
दक्षिण पार्श्व में से नीचे आता है तथा पुन: मूलाधार पर दूसरे का अतिक्रमण
करता है। यह गति अंग्रेजी के आठ (8) अंक के अर्ध भाग के आकार के समान है।
दूसरे शक्ति-प्रवाह का नाम 'चन्द्र' (इड़ा) है, जिसकी गति पहले शक्ति-प्रवाह
से ठीक विपरीत है और जो इस, आठ (8) अंक को पूर्ण बनाता है। यद्यपि यह आकार आठ
(8) की तरह है, परन्तु उसका निम्न भाग ऊपरी भाग से बहुत अधिक लम्बा है। ये
शक्ति-प्रवाह दिन-रात गतिशील रहते हैं और विभिन्न केन्द्रों में, जिन्हें हम
चक्र कहते हैं, महत्वपूर्ण जीवन-शक्तियों का संचय किया करते हैं। पर शायद ही
हम इन शक्ति-प्रवाहों का अनुभव कर पाते हैं। एकाग्रता द्वारा हम उनका अनुभव
कर सकते हैं और शरीर के विभिन्न अंगों में चलनेवाली उनकी क्रिया को समझ सकते
हैं। इस 'सूर्य' और 'चन्द्र के शक्ति-प्रवाह श्वास-क्रिया के साथ घनिष्ठ रूप
से सम्बद्ध हैं और श्वास-क्रिया के नियमन द्वारा हम समस्त शरीर को वश में कर
सकते हैं।
|