धर्म एवं दर्शन >> सरल राजयोग सरल राजयोगस्वामी विवेकानन्द
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स्वामी विवेकानन्दजी के योग-साधन पर कुछ छोटे छोटे भाषण
कठोपनिषद में देह को रथ, मन को लगाम, इन्द्रियों को घोड़े, विषय को पत और
बुद्धि को सारथि कहा गया है। इस रथ में बैठी हुई आत्मा को रथी या रथस्वामी
कहा गया है। यदि रथी समझदार नहीं है और सारथि से घोड़ों को नियन्त्रित नहीं
करा सकता तो, वह कभी भी अपने ध्येय तक नहीं पहुँच सकता। अपितु, दुष्ट अश्वों
के समान इन्द्रियाँ उसे जहाँ चाहेंगी, खींच ले जाएँगी; यहाँ तक कि वे उसकी
जान भी ले सकती हैं। ये दो शक्ति-प्रवाह मानो सारथि के हाथों में अश्वों के
नियन्त्रण के लिए लगाम हैं और अश्वों को अपने वश में करने के लिए उसे इनके
ऊपर नियन्त्रण करना आवश्यक है। नीतिपरायण होने की शक्ति हमें प्राप्त करनी ही
होगी। जब तक हम उसे प्राप्त नहीं कर लेते, हम अपने कर्मों को नियन्त्रित नहीं
कर सकते। नीति की शिक्षाओं को कार्यरूप में परिणत करने की शक्ति हमें केवल
योग से ही प्राप्त हो सकती है। नीतिपरायण होना योग का उद्देश्य है। जगत् के
सभी बड़े-बड़े आचार्य योगी थे और उन्होंने प्रत्येक शक्ति-प्रवाह को वश में कर
रखा था। योगी इन दोनों प्रवाहों को मेरुदण्ड के तले में रोकते हुए उनको
मेरुदण्ड के मध्य से होकर परिचालित करते हैं। तब ये प्रवाह ज्ञान के प्रवाह
बन जाते हैं। यह स्थिति केवल योगी ही के लिए सम्भव है।
प्राणायाम की द्वितीय शिक्षा : कोई एक ही प्रणाली सभी के लिए उपयुक्त नहीं
है। प्राणायाम लयपूर्ण क्रमबद्धता के साथ होना चाहिए। और इसका सब से सहज उपाय
है गिनना। चूंकि यह गिनना पूर्णरूपेण यन्त्रवत् हो जाता है, हम इसके बजाय एक
निश्चित संख्या में पवित्र मन्त्र, ' ॐ ' का जप करते हैं।
प्राणायाम की विधि इस प्रकार है : दायें नथुने को अँगूठे से दबाकर चार बार ॐ
का जप करते हुए धीरे-धीरे बायें नथुने से श्वास भीतर लो। तत्पश्चात् बायें
नथुने पर तर्जनी रखकर दोनों नथुनों को कसकर बंद कर दो और ॐ का मन ही मन आठ
बार जप करते हुए श्वास को भीतर रोके रहो।
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