धर्म एवं दर्शन >> सरल राजयोग सरल राजयोगस्वामी विवेकानन्द
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स्वामी विवेकानन्दजी के योग-साधन पर कुछ छोटे छोटे भाषण
तत्पश्चात् अँगूठे को दाहिने नथुने से हटाकर चार बार ॐ का जप करते हुए उसके
द्वारा धीरे-धीरे श्वास को बाहर निकालो।
श्वास बाहर निकालते समय फुफ्फुस से समस्त वायु को निकालने के लिए पेट को
संकुचित करो। फिर बायें नथुने को बंद करके चार बार ॐ का जप करते हुए दाहिने
नथुने से श्वास भीतर लो। इसके बाद दाहिने नथुने को अँगूठे से बंद करो और आठ
बार ॐ का जप करते हुए श्वास को भीतर रोको। फिर बायें नथुने को खोलकर चार बार
ॐ का जप करते हुए पहले की भांति पेट को संकुचित करके धीरे-धीरे श्वास को बाहर
निकालो। इस सारी क्रिया को प्रत्येक बैठक में दो बार दुहराओ अर्थात् प्रत्येक
नथुने के लिए दो के हिसाब से चार प्राणायाम करो। प्राणायाम के लिए बैठने के
पूर्व सारी क्रिया प्रार्थना से प्रारम्भ करना अच्छा होगा।
एक सप्ताह तक इस अभ्यास को करने की आवश्यकता है। फिर धीरे-धीरे
श्वास-प्रश्वास की अवधि को बढ़ाओ, किन्तु अनुपात वही रहे। अर्थात् यदि तुम
श्वास भीतर ले जाते समय छह बार ॐ का जप करते हो, तो उतना ही श्वास बाहर
निकालते समय भी करो और कुम्भक के समय बारह बार करो। इन अभ्यासों के द्वारा हम
अधिक पवित्र, शुद्ध और आध्यात्मिक होते जाएँगे। किसी विषय में मत जाओ अथवा
कोई शक्ति (सिद्धि) की चाह मत करो। प्रेम ही एक ऐसी शक्ति है, जो चिरकाल तक
हमारे साथ रहती है और उत्तरोत्तर बढ़ती जाती है। राजयोग के द्वारा ईश्वर को
प्राप्त करने की इच्छा रखनेवाले व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक, नैतिक और
आध्यात्मिक दृष्टि से सबल होना आवश्यक है। अपना प्रत्येक कदम इन बातों को
ध्यान में रखकर ही बढ़ाओ।
लाखों में कोई बिरला ही कह सकता है, “मैं इस संसार के परे जाकर ईश्वर का
साक्षात्कार करूँगा।'' शायद ही कोई सत्य सामने खड़ा हो सके। किन्तु अपने
उद्देश्य की सिद्धि के लिए हमें मरने के लिए भी तैयार रहना पड़ेगा।
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