धर्म एवं दर्शन >> सरल राजयोग सरल राजयोगस्वामी विवेकानन्द
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स्वामी विवेकानन्दजी के योग-साधन पर कुछ छोटे छोटे भाषण
श्रद्धाभाव से योगाभ्यास करने पर मन का एक के बाद एक स्तर खुलता जाता है और
प्रत्येक स्तर नये तथ्यों को प्रकाशित करता है। हम अपने सम्मुख नये जगतों की
सृष्टि होती सी देखते हैं, नयी शक्तियाँ हमारे हाथों में आ जाती हैं, किन्तु
हमें मार्ग में ही नहीं रुक जाना चाहिए, और जब हमारे सामने हीरों की खान पड़ी
हो, तो काँच के मणियों से हमें चौधियां नहीं जाना चाहिए।
केवल ईश्वर ही हमारा लक्ष्य है। उसकी प्राप्ति न हो पाना ही हमारी मृत्यु है।
सफलताकांक्षी साधक के लिए तीन बातों की आवश्यकता है। पहली
है ऐहिक और पारलौकिक इन्द्रियभोग-वासना का त्याग और केवल भगवान् और
सत्य को लक्ष्य बनाना। हम यहाँ सत्य की उपलब्धि के लिए हैं, भोग के लिए नहीं।
भोग पशुओं के लिए छोड़ दो, जिनको हमारी अपेक्षा उसमें कहीं अधिक आनन्द मिलता
है। मनुष्य एक विचारशील प्राणी है, और मृत्यु पर विजय तथा प्रकाश को प्राप्त
कर लेने तक उसे संघर्ष करते ही रहना चाहिए। उसे फिजूल की बातचीत में अपनी
शक्ति नष्ट नहीं करनी चाहिए। समाज की पूजा एवं लोकप्रिय जनमत की पूजा
मूर्ति-पूजा ही है। आत्मा का लिंग, देश, स्थान या काल नहीं होता। दूसरी
है सत्य और भगवत्प्राप्ति की तीव्र आकांक्षा। जल में डूबता मनुष्य
जैसे वायु के लिए व्याकुल होता है, वैसे ही व्याकुल हो जाओ। केवल ईश्वर को ही
चाहो, और कुछ भी स्वीकार न करो। जो आभास मात्र है, उससे धोखा न खाओ। सब से
विमुख होकर केवल ईश्वर की खोज करो।
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