धर्म एवं दर्शन >> सरल राजयोग सरल राजयोगस्वामी विवेकानन्द
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स्वामी विवेकानन्दजी के योग-साधन पर कुछ छोटे छोटे भाषण
तीसरी बात में छह अभ्यास हैं :
(1) मन को बहिर्मुख न होने देना।
(2) इन्द्रिय-निग्रह।
(3) मन को अन्तर्मुख बनाना।
(4) प्रतिकार रहित सहिष्णुता या पूर्ण
तितिक्षा।
(5) मन को एक भाव में स्थिर रखना। ध्येय को
सम्मुख रखो, और उसका चिन्तन करो। उसे कभी अलग न करो। समय का हिसाब मत करो।
(6) अपने स्वरूप का सतत चिन्तन करो।
अन्धविश्वास का परित्याग कर दो। 'मैं तुच्छ
हूँ, इस तरह सोचते हुए अपने को सम्मोहित न करो। जब तक तुम ईश्वर के
साथ एकात्मता की अनुभूति (वास्तविक अनुभूति) न कर लो, तब तक रात-दिन अपने
आपको बताते रहो कि तुम यथार्थत: क्या हो।
इन साधनाओं के बिना कोई भी फल प्राप्त नहीं हो सकता।
हम उस सर्वातीत सत्ता या ब्रह्म की धारणा कर सकते हैं, पर उसे भाषा के द्वारा
व्यक्त करना असम्भव है। जैसे ही हम उसे अभिव्यक्त करने की चेष्टा करते हैं,
वैसे ही हम उसे सीमित बना डालते हैं और वह ब्रह्म नहीं रह जाता।
हमें इन्द्रिय-जगत् की सीमाओं के परे जाना है और बुद्धि से भी अतीत होना है।
और ऐसा करने की शक्ति हममें है भी।
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