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कविता संग्रह >> उजला सवेरा

उजला सवेरा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :96
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9605
आईएसबीएन :9781613015919

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आज की पीढ़ी को प्रेरणा देने वाली कविताएँ

 

मस्त हवा

उनके लाल कपोलों को
छुकर आई है ये हवा,
मन धडक़ाये, तन महकाए
कैसी चलती है शीतल हवा।

इस ठंडी हवा में भी
ताजगी का ऐहसास है
वो खुद चली आ रही है
ऐसा हुआ आभास है।
मन प्रफुल्लित है जैसे हुआ।

मन धडक़ाये, तन महकाए
कैसी चलती है शीतल हवा।

मन ही मन मुस्काती होगी
इंतजार होगा उसे भी मेरा
तन से चादर लपेटती हुई
ध्यान करती होगी वह मेरा
चाहती होगी बाहों में भरना।

मन धडक़ाये, तन महकाए
कैसी चलती है शीतल हवा।

रूख बदल कर यहीं से अपना
तु वापिस उनके पास जा
मन धडक़ा कर तुम उनका
उनको मेरी  याद दिलाना
मिलेंगे बहुत जल्द ये कहना।

मन धडक़ाये, तन महकाए
कैसी चलती है शीतल हवा।

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