कविता संग्रह >> यादें यादेंनवलपाल प्रभाकर
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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
शहर
मुझे शहर रास न आया,
जिसमें फैली अद्भुत माया।
शहरों को लिया आगोश में
पश्चिमी कपड़े और पहनावे ने
आधा नग्न नारी शरीर हुआ।
मुझे शहर रास न आया,
जिसमें फैली अद्भुत माया।
आधा नग्न नारी शरीर ही
बाधक है देश की तरक्की में,
भविष्य, हर बच्चा बेकार हुआ।
मुझे शहर रास न आया ,
जिसमें फैली अद्भुत माया।
जिस्म को दिखाने की खातिर
पहनती वस्त्र कम शरीर पर
रेप सा भयानक रोग शुरू हुआ।
मुझे शहर रास न आया.
जिसमें फैली अद्भुत माया।
पहन कर भडक़ीले कपड़े
निकलती सडक़ों पर अकेले
देखें उन्हें तो देव भी हीलजां।
मुझे शहर रास न आया,
जिसमें फैली अद्भुत माया।
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