कविता संग्रह >> यादें यादेंनवलपाल प्रभाकर
|
7 पाठकों को प्रिय 31 पाठक हैं |
बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
गर्मी
उफ ये गर्मी
अच्छी थी वो सर्दी
जब हम ओढे रजाई
रहते थे बैठे चारपाई
आग जला भगाते सर्दी
खाते रेवड़ी मूंगफली।
मगर आई गर्मी को
भगाएं दूर कैसे हम।
भडक़ाती है और तपन को
फ्रिज की ठंडी बर्फ
न घर में आराम है।
न बाहर किसी बगीचे में
तभी कहते हैं बात सच्ची
गर्मी से सर्दी थी अच्छी।
0 0 0
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book