कविता संग्रह >> यादें यादेंनवलपाल प्रभाकर
|
7 पाठकों को प्रिय 31 पाठक हैं |
बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
नीरस जिन्दगी
जिन्दगी नीरस हो चली है
आशाएं धूमिल होने लगी हैं।
मगर फिर भी जाने क्यों?
डोर जीवन की बंधी है।
साहित्य की क्या खोज करूँ
खुद जीवन मेरा खोया है
क्या मैं कोई कविता लिखूँ
खुद अन्तर्मन मेरा रोया है
सोचता हूँ तभी आज मैं
क्यों अश्रुधारा बह चली है।
मगर फिर भी जाने क्यों?
डोर जीवन की बंधी है।
आँखों में अश्रु हाथ में कलम
लिखना क्या है मुझको ये
पता भी नहीं है सनम
तभी तो बार-बार जहन में
उठता है सवाल जिन्दगी का
यादें पुरानी मिट चली हैं।
मगर फिर भी जाने क्यों?
डोर जीवन की बंधी है।
0 0 0
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book