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यादें

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9607
आईएसबीएन :9781613015933

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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।



उजली सांझ


आज उजली सी सांझ
पोत काली मिट्टी से कपोल,
आकर बैठ गई सामने
चेहरा हंसमुख गोल-गोल।

छत पर बैठे-बैठे ठाली
मैंने अपनी कलम उठा ली
और कुछ नजर न आया
सांझ पर ही.........
अपनी कविता बना ली
होंठ लालिमा से लाल
आकर बैठ गई सामने
चेहरा हंसमुख गोल-गोल।

चंचल सहमी चितवन सी
कुछ उजली कुछ मधुबन सी
चमकीला सुन्दर छरहरा बदन
आँखें मदिरा की प्याली
दांतों की चमक अद्भुत प्यारी
छाती है जैसे बिल्कु ल गोल।
आकर बैठ गई सामने
चेहरा हंसमुख गोल-गोल।

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