धर्म एवं दर्शन >> श्री दुर्गा सप्तशती श्री दुर्गा सप्तशतीडॉ. लक्ष्मीकान्त पाण्डेय
|
3 पाठकों को प्रिय 212 पाठक हैं |
श्री दुर्गा सप्तशती काव्य रूप में
।। ॐ श्रीदुर्गायै नमः।।
क्षमा प्रार्थना
परमेश्वरि निसि दिन करहुं, नाना विधि अपराध।दास समझ कर दे क्षमा, करिके कृपा अगाध।।१।।
जानत आबाहन नहीं, नाहिं विसर्जन ध्यान।
पूजा विधि को ज्ञान नहिं, क्षमहु मातु अज्ञान।।२।।
मंत्र न जानूं नहिं क्रिया, मातु-भगति ते हीन।
देवेस्वरि स्वीकार करु, जस तस पूजन कीन।।३।।
भले किए अपराध सत, एक बार कहु मातु।
जे गति तिन भगतिन सुलभ, सो लखि देव सिहात।।४।।
माता अपराधी जदपि, आया सरन तिहारि।
जस समुझहु तस करहु मां, दीन दया अधिकारि।।५।।
भ्रम से, भूले से भया, अथवा मम अज्ञान।
जप की घट-बढ़ करु क्षमा, दे प्रसन्नता दान।।६।।
सत चित अरु आनन्दमयि, कामेस्वरि अवतार।
प्रीति सहित पुलकित हृदय, पूजा लो स्वीकार।।७।।
गुप्तहु ते अति गुप्त जो, ताको राखन हार।
सकल सिद्धि दे करि कृपा, पूजा ले स्वीकार।।८।।
० ० ०
|